मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

बस जिए जा रहा हूँ



चलना है मुड़ना है जाना है
जाने कहा मंजिल है कहा ठिकाना है
कंधे पर खुद की उम्मीदों का बोझ लिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ........

तकलीफें काफी है उम्मीद तोड़ देने को,
सब तैयार बैठे है साथ छोड़ देने को,
आंसुओं से भरकर प्याला जाम पे जाम पिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ.....

हर तरफ काला अँधेरा सा है,
धुंध में हूँ नाउम्मीदी का घेरा सा है,
रिहाई की एक नाकाम कोशिश में मिन्नतें किये जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ.....

कोई साथी नहीं बस तन्हाइयां हैं,
क्या अपना क्या पराया सब रुस्वाइयाँ हैं,
रास्ते बदल बदलकर जाने किसलिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ.......

पंख बिन उड़ान सांस बिन हवा के,
ज़ख्म रिस रहे हैं दर्द में हूँ बिन दावा के,
लहुलूहान हूँ पर हौसला दिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ........

मिट से रहे हैं क़दमों के निशाँ, हालातों के बयान;
कहने को बेकरार पर खामोश सी ज़बान;
बंद आवाज़ से बिन अल्फाजों के तराने गा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ........

पलटकर देखने को कुछ नहीं, न बीते हुए पल न आज न कल;
आग़ाज़ से अंजाम तक न खामोशी न हलचल,
तनहा सा सिमटकर बैठकर, कही से खुदको धुन्धकर ला रहा हूँ;
बस जिए जा रहा हूँ.........

अब तो आसमान भी मुकर जाता है रास्ता दिखने को, उम्मीद बरसाने को;
हाथ तंग है मुट्ठियाँ बंद है, तरस रहा हूँ कुछ भी पा जाने को;
ज़िन्दगी का अँधेरा मिटाने के लिए उम्मीद की लौ जला रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ..............

सब खाली है तकदीर का दामन, मेरा खुद का मन,
न मुस्कुराहटों से कोई ताल्लुक, न खुशियों से कोई बंधन,
दफनाकर दर्द को सीने में बनावटी मुस्कान दिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ,
सब नज़रों से ओझल है, धुंध में मंजिल भी है रास्ता भी है,
खुशियों से जाने क्या नाता है, कुछ पराई है कुछ से वास्ता भी है;
सुलझ जाएगी ये उलझी डोर, दिल को झूठी दिलासा दिए जा रहा हूँ,
बस जिए जा रहा हूँ................

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