की दिन हो या हो कोई रात
तुझको देखता हूँ,
कसम से उस खुदा के बाद
तुझको देखता हूँ ..
की जब से रूठकर के तुम
कहीं पर खो गए हो,
की मुझको भूल करके बेवफा
तुम हो गए हो,
मै तब से सोचकर हालत तुझको
देखता हूँ ..
कसम से...................
मै जब भी सोचता हु इश्क के
गुज़रे फ़साने,
मुझे तब याद आते हैं
तुम्हारे सब बहाने,
मै तब भी भूलकर हर बात
तुझको देखता हूँ ..
कसम से...................
कभी तो याद आते हैं वो
पलछिन साथ थे जब,
हया को भूलकर हाथों में
अपने हाथ थे जब,
बसर तक करके वो पल याद
तुझको देखता हूँ..
कसम से...................
तुझे होगा पता जब चाँद को
मै देखता था,
तेरी तस्वीर हर आहद में मै
देखता था,
जगागर फिर वही ज़ज्बात
तुझको देखता हूँ ..
कसम से...................
Waah!! Bohot achhe, Shukla Ji👍👌
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