रविवार, 31 दिसंबर 2017

सिर्फ कैलेंडर नही बदलेंगे इस बार

सिर्फ कैलेंडर नही बदलेंगे इस बार
बदलेंगे इंसान को हिन्दू मुसलमान बताने वाले विचार
बदलेंगे वो ख्याल जो छींनते हैं इंसान से इंसान का प्यार
बदलेंगे उन सीमाओं को गोलियां चलती हैं जिनके पार
बदलेंगे उस समाज को जो गरीब से छीने रोटी का अधिकार
आइये कसम खाएं सिर्फ कैलेंडर नहीं बदलेंगे इस बार

जब भी कोई भूखा होगा रोटी हम खिलाएंगे
ठंड से ठिठुरते का कम्बल बन जाएंगे
किसी गरीब के पेट पर नही करेंगे वार
आइये कसम खाएं सिर्फ कैलेंडर नही बदलेंगे इस बार

रिश्वत ले देकर किसी का हक़ नही मरेंगे
बहनो की लाज का दुपट्टा नही उतारेंगे
धर्म के नाम पर नही उठाएंगे हथियार
आइये कसम खाएं सिर्फ कैलेंडर नही बदलेंगे इस बार

सीखेगे कैसे रोते हुए को हसाना है
सफर बस साल का है, गुज़र जाना है
याद रखेंगी सदियां आ करें कुछ ऐसा यार
आइये कसम खाएं सिर्फ कैलेंडर नही बदलेंगे इस बार